दंगाइयों को गोली मारो सत्ता ने हुक्म सुनाया है , पर जो दंगे की भेंट चढ़े किसी ने मौत की वजह बताया है? चंद रुपयों के मुआवजे से बस खर्चा- पानी चल सकता है पर जिस अंधे की लाठी टूटी वो कैसे चल सकता है बाप बिना वो रतन लाल का बेटा कैसे पल सकता है , अंकित बिन उसकी पत्नी का करवा चौथ कैसे मन सकता है कितनी मां ने खोए बेटे पर ये कैसा बलिदान है पत्रकारों ने खबर चलाई दिल्ली लहूलुहान है मजहवी उन्माद नहीं ये लड़ने वाला हैवान था इंसानियत का खून हुआ, मरने वाला इंसान था इतना सब होने के बाद लाशों को रोने के बाद अब दंगे की जांच होगी राज पर्दाफाश होगी सिसकियों को सुनने वाले हैं फिर भी होठ तो खामोश होगी और , बच जाएंगे गुनहगार ठीक जैसे, अब तक बचते आए हैं जो हैं बेबस , निर्दोष यहां फिर मरेंगे , जैसे अब तक मरते आए हैं #कविता:- दिल्ली लहूलुहान है