सफ़र आखिरी सफर कोई असर छोड़ जाता हूं अपने इश्क की इक नज़र छोड़ जाता हूं। जब मिलोगे तुम सनम पूछोगे मेरा हाले दिल बेकरार दिल कि थोड़ी ख़बर छोड़ जाता हूं। तकते रहे हर घड़ी नजरे इनायत हों इधर अंधियारी रातों को मै सहर छोड़ जाता हूं। हर गली लगते ठहाके और होता कहकशां जिंदादिल शहर थोड़ी जहर छोड़ जाता हूं। चर्चे तेरे इश्क के हों या बेवफाई के सनम हो तेरी रूसवाईयां मै शहर छोड़ जाता हूं। इश्क की इन तंग गलियों मे जिधर गुजर गये खूने-जिगर दर्द की इक लहर छोड़ जाता हूं। मौत का सन्नाटा और सहमी-सहमी है फिजां चीखते हैं मुर्दे मैं अब कबर छोड़ जाता हूं। जब हुए हलकान और परेशान राहों मे गिरें हो बेगाने इश्क की मै डगर छोड़ जाता हूं।। चल दिए नजरें बचाकर इस जहां से 'शैल' हम क्यूं करें शिकवा के मै अब सफर छोड़ जाता हूं। #आखिरीसफर