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उन आखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं जब में

उन आखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं गीली मेंहदी रोई होगी छुप के घर के कोने में ताजा काजल छूटा होगा चुपके चुपके रोने में जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में.. शायद दूध उतर आया हो बूढी मां के दामन में वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है, जो अपने पती की अर्थी को भी कंधा दे सकती है मै ऐसी हर देवी के चरणो मे शीश झुकाता हूं, इसिलिये मे कविता को
 हथियार बना कर गाता हू
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है, उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है गरम दहानो पर तोपो के जो सीने आ जाते है, उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड जाते है उनके लिये हिमालय कंधा देने को झुक जाता है कुछ पल को सागर की लहरो का गर्जन रुक जाता है उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ जैसा होता है, चित्र शहीदो का मंदिर की मूरत जैसा होता है #OpenPoetry army day hai aaj
उन आखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं गीली मेंहदी रोई होगी छुप के घर के कोने में ताजा काजल छूटा होगा चुपके चुपके रोने में जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में.. शायद दूध उतर आया हो बूढी मां के दामन में वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सर ले सकती है, जो अपने पती की अर्थी को भी कंधा दे सकती है मै ऐसी हर देवी के चरणो मे शीश झुकाता हूं, इसिलिये मे कविता को
 हथियार बना कर गाता हू
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है, उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है गरम दहानो पर तोपो के जो सीने आ जाते है, उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड जाते है उनके लिये हिमालय कंधा देने को झुक जाता है कुछ पल को सागर की लहरो का गर्जन रुक जाता है उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ जैसा होता है, चित्र शहीदो का मंदिर की मूरत जैसा होता है #OpenPoetry army day hai aaj
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