हम दोनों तट पर चलते हुए रेत पर निशाँ बनाते हैं दो मेरे निशाँ, दो उसके निशाँ पीछे मुड़कर देखते है तो लहरों ने मिटा दिए हैं मेरे निशाँऔर उसके निशाँ मंज़िल की हमें कोई ख़्वाहिश नही हैं बस सफ़र में हाथों को थामे हम दोनों बना रहे हैं मैं अपने निशाँ ,वो अपने निशाँ उम्र के आख़िरी पड़ाव पर हम दोनों एक हो गए हैं अब रेत पर केवल नज़र आते हैं हम दोनों के कदमों के केवल एक निशाँ -------------------अनुराग हम दोनों तट पर-----