Nojoto: Largest Storytelling Platform

सुन सरल नहीं आज़ादी थी,पड़ा गलाना खुद को था। सभी स

सुन सरल नहीं आज़ादी थी,पड़ा गलाना खुद को था।
सभी सुखों का होम किया था,पिया विष छोड़ दूध जो था।।
ठुकराकर हमने जब अपने ,पर जब गले लगाया था।
तब बड़े प्रयासों से ही तो,हर भारती जगाया था।।

©Bharat Bhushan pathak #RepublicDay  hindi poetry love poetry in hindi hindi poetry on life poetry lovers
सुन सरल नहीं आज़ादी थी,पड़ा गलाना खुद को था।
सभी सुखों का होम किया था,पिया विष छोड़ दूध जो था।।
ठुकराकर हमने जब अपने ,पर जब गले लगाया था।
तब बड़े प्रयासों से ही तो,हर भारती जगाया था।।

©Bharat Bhushan pathak #RepublicDay  hindi poetry love poetry in hindi hindi poetry on life poetry lovers