टकराए थे दो अनजाने एक दो राहे पर, कब और कैसे एक हो गई राह तेरी मेरी यूँ ही साथ चलते चलते हम बन गए हमराही साया तेरा लौ दिए की, जो हो कभी राह अँधेरी जैसे बारिश के बाद निकली हो धूप सुनहरी ऐसी ख़ूबसूरत लगे तेरे संग मुझे जेठ की दुपहरी विश्वास की जोत से, दीये जलाएँ हैं हमने प्यार के प्रीत की बाती, आशा के दीप से जगमग जोड़ी हमारी ♥️ Challenge-625 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।