मैं बेख़ुदी के तेज़ सैलाब में, निकल आया कितना दूर हूँ, पीछा देखता हूँ तो लरज़ता है, साहिल बहुत पीछे जो छूट गया। मेरे अरमाँ हुए सब लहू-लुहान, न रही सदा में भी अब वो बात है, मैं ख़ुद भी हो चुका हूँ तार-तार, किसी अपने की ही यह सौगात है। मगर आया अब यह ख़याल है, पा लूँ उस साहिल को फिर से मैं, दरिया के तेज़ बहाव में भी, सफीना को लहर चीर निकालूँ मैं। मैं माहिर तेज़ बहाव का, मुझे फ़िक्र है न खौफ़-ऐ-आब है, मैं फिर से बहर पे निकलूंगा, फिर क्या तूफाँ क्या गिर्दाब है... लरजता---Regret, साहिल---shore सदा---Voice सौगात---Gift, सफ़ीना---Yacht,खौफ-ए-आब---Fear of water, behar गिर्दाब---Trench,