"मंजिल की खोज में चलना शुरू किया है, चलने में माहिर हो जाएंगे। अगर ना हुए ख्वाब मुक्कमल तो एक नैसर्गिक मुसाफिर हो जाएंगे।।" अपनी भी जिन्दगी में आऐगा सुबह, मत घबरा ऐ! मुसाफिर। सघन हीं क्यों न हो घन, रवि को छुपा न सका आखिर। जिस राह के राही हो तुम, उस राह का बनजा तू माहिर। यद्यपि ना मिले कामयाबी की छांव तथापि बना रह एक अच्छा मुसाफिर। अपने लिए ना सही अपनों के खातिर। राह की थकान को, मत होने दो कभी जाहिर। चलता रह बस चलता हीं रह, चलने से क्यों कतराते ओ! मेरे कर्मवीर। चलके हीं तो तुझे, खुद लिखनी है अपनी तकदीर। ना जन्नत,ना जहन्नुम, और ना हीं देख कोई भीड़। तुझे तो छोड़ना है बंद आंखों से तीर। अपनी भी जिन्दगी में आऐगा सुबह, मत घबरा ऐ! मुसाफिर।। मुसाफिर