बैठ आज यूँ एकाकी में, छलक गया स्वप्नों का प्याला। मैं पीती रहीं न ज्ञात हुआ, रातों के सन्नाटे में, कोलाहल चारों और हुआ। पीकर जब मदमस्त हुआ, मनभावन, मधु का प्याला। Kavita panot Just remembering bachhan saheb Infuenced by madhushala ©Kavita jayesh Panot #मुक्तक #मधुशाला#harivanshraibachhan#