लब-ए-इज़हार पर जब हर्फ-ए-गवाही आए आसमां मे चांद सितारे नज़रों मे जड़ जाए इज़ाहर-ए-अकिदत से वहम-ओ-गुमां भी निकल जाए बहारों मे शादाब कायनात-ए-गुलिस्तां हो जाए दिवाने के अफसानों की बारात मे बगावत के निशां मिट जाए इश्क मे भटके हुए को किनारा मिल जाए। #मेरीक़लमसे #मेरीडायरीकेकुछपन्ने #kavishala #yqshayari #yqkavita