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मोह श्री गीता जी का प्रथम और अन्तिम श्

  मोह
          श्री गीता जी का प्रथम और अन्तिम श्लोक ।
       से ज्ञान प्राप्त होता है कि अपने पुर्व क्रमों के।
       फल को हम कभी मिटा नहीं सकते प्रथम श्लोक में।
       धृतराष्ट्र के अन्धकार पुनर्जन्म का ही फल हे मेरे दोस्त।  
       वही‌ विपरित सन्जय को दिव्य दृष्टि एक पुनः कर्म‌ की।
     ना चाहते हमें वो फल मिल जाता है जिसका न सोचाहो।
      यही मंत्र ब्रारम्बार कहा कर्म कर फल की इच्छा ना कर।
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