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'मक्षिका: व्रणं इच्छन्ति।' अर्थात् पूरे शरीर की सु

'मक्षिका: व्रणं इच्छन्ति।'
अर्थात् पूरे शरीर की सुन्दरता को छोड़कर मक्खी खोज कर सिर्फ़ घाव/व्रण पर ही बैठती है. इसीलिए शास्त्रों का निर्देश है कि मन जब-जब भटके, सावधानीपूर्वक अच्छे मनुष्य के लिए इसे बार-बार खींचकर सद्गुणों में प्रवृत्त करते रहना ही मनुष्यता है. 

कहा भी गया है -
1) मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. 
2) मन को संस्कार देते रहना कठिन अवश्य है किन्तु नामुमकिन नहीं है.

©Shiv Narayan Saxena
  सद्गुण  . . . .  Vimlesh Gautam Parwarish Kal Ki (Deepak Yadav) Jyoti Duklan motivationl indar jeet guru  Dheerendr Yadav   Dhyaan mira  sakshi CHAUHAN Arzooo IshQ परस्त {Official } Himshree verma  IshQ परस्त {Official } SAYYAD NIKHAT دل سے درد کا رشتہ   NIKHAT الفاظ جو دل چو جائے  Trilok singh ARVIND YADAV 1717  kiran kee kalam se  "अब्र" 2.0 Niaa_choubey prakriti goswami Dheeraj Bakshi