परिस्थिति की स्थिति नही सँभाल सके वो कुछ कहीं मनुष्य है उलझ रहा जाल में पथभ्रष्ट की। नवीनीकरण,आधुनीकीकरण के नाम से चल रहे प्रयोग, ध्येय है सभी का,प्रशस्त करे सुलभ मार्ग जीवन पद्धत की। चाहते सभी विलास भोग की वो गुजा़र ले, इसी भाव को लिए मनुष्यता को कुछ भुला भी ले। न कष्ट औरों की सोंचते न देखते उनकी संवेदना, स्वार्थ में लिप्त होके करते अपनी हर पूर्ण कामना। भुला रहा हर मनुष्य अर्थ "मनुष्यता"का देखो आज। झेल रहा मार भी समय की,न रख रहा है लाज।। (Read in the same way as ..मैथिलीशरण जी की कवितानुसार पढे) नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH30 के साथ और "मनुष्यता" पर कविता लिखें। (मूल कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।