जिंदगी के हर दुख उस छाव की ही तरह है जहां प्रकाश तो है किंतु उत्साह नहीं अंधेरा तोह है किंतु राह नहीं जोरो से पेड़ों की जड़ों को थामें अंधेरा डगमगाता है हल्का सा उन रोशनीयो के समीप गोल बवंडरो सा चमकता, गिरता है धीरे से सतह के बीचो बीच क्या सवेरा,क्या दोपहर,क्या शाम उस अंतर्मन के लिए वृक्ष के तले बैठा सोचता है हर घड़ी उभरने की हर परिस्थितियों से किंतु बांहें फैलाए फिर सो जाता है उसी छांव में, अंधेरों के इर्द-गिर्द रातों के बीचो-बीच,अमावस्या के घेरों में उल्लूओ की आंखों सा नज़र आता है उसे उस असीम अंधेरे में भी चुनौतियों की हर डगर एक मजबूत चारदीवारी से कम नहीं लगती बेहद तप्त जिसकी मंशाए हैं उभरने का वक्त कहां,गहराइयों की दौड़ में सिर्फ सन्नाटा नजर आता है , कानों को गूंजता ,शून्य सा सुदूर लौट लौट आते हैं यह फिर अंधेरों में बसे मेरे यह ख्याल एक नई खोज से आत्मा की सतह से तले डूबते फिर से लौट लौट आते हैं Yãsh✍️ #Deep #black #Dark #Deep #words #deeppoem #Poetry #Shayari #Thoughts #BlackSmoke