भीड़ इस भीड़ में हम कुचले जा रहे थे, ना कोई पूछने वाला फ़रिश्ता था, ना हम उठाने वाला कोई गुलदस्ताँ ना मेरा कोई आशियाना था,ना मेरे कोई यहाँ लोग थे, बस यहीं मेरा ठिकाना था, इस भीड़ में ही मेरा आशियाना था। ना मेरी पहचान थी और ना ही मेरा कोई मेहमान था, बस भीड़ में कुचले जा रहे थे लेके अल्हा का नाम, ना मेरे पास भूख थी ना मेरे पास खाना था, ऐसा लग रहा था कि यहाँ से मुझे कहीं दूर उड़ जाना था।।। इन पथिकों की पथ से हमें मुड़ जाना था।।। एक अलग आशियाना बनाना था,, अपनों को गले लगाना था।।।।। बस इस भीड़ से कहीं दूर चले जाना था।।।। #भीड़