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न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से असहज महस

न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से 
असहज महसूस करती हूँ।

क्या सुन्दरता सिर्फ चेहरे की होती है। 
या मन और उसमें जन्मीं विचारों से होती है। 

सुन्दरता को परिभाषित करने वाले 
उसमें पल रहे उसके विचारों को भूल जाते हैं।

या फिर हरेक चेहरे के पिछे छुपे 
उसके व्यक्तित्व को पढ पाना नामुमकिन होता है।

सुन्दर काया और जुबां मटमैली
तो क्या वह काया सुन्दर कहलाती है।

या मटमैली काया और मनमोहक जुबां पर
 निखरती वाणी ही  सुन्दरता कि निशानी होती है। 

ये तय हमें ही करना होता है।

इसलिए सुन्दरता की परिभाषा उत्कृष्ट व्यवहार, विचार, 
और वाणी को ही मानना उत्कृष्टी है।। न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से 
असहज महसूस करती हूँ।

क्या सुन्दरता सिर्फ चेहरे की होती है। 
या मन और उसमें जन्मीं विचारों से होती है। 

सुन्दरता को परिभाषित करने वाले 
उसमें पल रहे उसके विचारों को भूल जाते हैं।
न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से 
असहज महसूस करती हूँ।

क्या सुन्दरता सिर्फ चेहरे की होती है। 
या मन और उसमें जन्मीं विचारों से होती है। 

सुन्दरता को परिभाषित करने वाले 
उसमें पल रहे उसके विचारों को भूल जाते हैं।

या फिर हरेक चेहरे के पिछे छुपे 
उसके व्यक्तित्व को पढ पाना नामुमकिन होता है।

सुन्दर काया और जुबां मटमैली
तो क्या वह काया सुन्दर कहलाती है।

या मटमैली काया और मनमोहक जुबां पर
 निखरती वाणी ही  सुन्दरता कि निशानी होती है। 

ये तय हमें ही करना होता है।

इसलिए सुन्दरता की परिभाषा उत्कृष्ट व्यवहार, विचार, 
और वाणी को ही मानना उत्कृष्टी है।। न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से 
असहज महसूस करती हूँ।

क्या सुन्दरता सिर्फ चेहरे की होती है। 
या मन और उसमें जन्मीं विचारों से होती है। 

सुन्दरता को परिभाषित करने वाले 
उसमें पल रहे उसके विचारों को भूल जाते हैं।
poonamsingh7895

Poonam Singh

New Creator

न जाने क्यों सुन्दरता पर अपनी तारीफों से असहज महसूस करती हूँ। क्या सुन्दरता सिर्फ चेहरे की होती है। या मन और उसमें जन्मीं विचारों से होती है। सुन्दरता को परिभाषित करने वाले उसमें पल रहे उसके विचारों को भूल जाते हैं।