Nojoto: Largest Storytelling Platform

मन हो अधीर जब जब प्रिय को पुकारता। कितना नयन तरसते

मन हो अधीर जब जब प्रिय को पुकारता।
कितना नयन तरसते हर अश्रु जानता।।
सम्भव नहीं मिलन कैसे  बातचीत हो ।
जल कर विरह अगन में परिपक्व प्रीत हो।।

तेरे चरण लगाया है ध्यान शारदे।
 मेरे हृदय बसा है अज्ञान शारदे ।।
मेरा सृजन अमर हो जीवन सफल बने ।
 हो जाय पूर्ण उर के अरमान शारदे।।

संबंध सब जगत के,थे प्रीति से बने। 
 विश्वास की मिलावट,थे साथ सब घने।।
हर व्यक्ति आज देखो, निज स्वार्थ सोचता।
सम्बंध इसलिये सब,हैं स्वार्थ में सने।।

           ---------- विनोद शर्मा "सागर"
मन हो अधीर जब जब प्रिय को पुकारता।
कितना नयन तरसते हर अश्रु जानता।।
सम्भव नहीं मिलन कैसे  बातचीत हो ।
जल कर विरह अगन में परिपक्व प्रीत हो।।

तेरे चरण लगाया है ध्यान शारदे।
 मेरे हृदय बसा है अज्ञान शारदे ।।
मेरा सृजन अमर हो जीवन सफल बने ।
 हो जाय पूर्ण उर के अरमान शारदे।।

संबंध सब जगत के,थे प्रीति से बने। 
 विश्वास की मिलावट,थे साथ सब घने।।
हर व्यक्ति आज देखो, निज स्वार्थ सोचता।
सम्बंध इसलिये सब,हैं स्वार्थ में सने।।

           ---------- विनोद शर्मा "सागर"