दर्द ए मुफ़ारक़त अरमाँ मंसूर कर गया, कुछ इस तरह से ग़ारत- गरी वक्त कर गया, वो खूबसूरत शाम गोशा ए दिल होता था, बेवफा से दिल्लगी कर नीम - पोशीदा था, खूबसूरत था हर लम्हा जब साथ होता था, क्या दोष दें जब हमारा गर्दिश ए बख़्त था, क्या लिखें वो खूबसूरत शाम की बात हम, वो क़ाबिज़ कही दिल के कोने में निहां था, शब ए ख़ल्वत 'रोज़ी'के लिए ना-रसा ही रही, मेरा आदिल ही तो अरमानों का कातिल था। ♥️ Challenge-590 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।