मेरे खुद की लिखी कविता हमने आंखों के पानी में खारे सागर देखें हैं | और गरीबों के कंधों पर पूरे भाकर देखें हैं|| कोई भूखी अंतड़ियों की चीखे संसद तक पहुंचा दो | आज सवेरे सड़क किनारे भूखे टाबर देखें हैं || राजनीति की भाषा हमको समझ नहीं आती है पर | भाषण से ही भूख मिटाने वाले जादूगर देखें हैं