दाम ज़िंदगी का मौत ने दाम लगा दिया। की जिंदगी का मौत ने दाम लगा दिया अच्छे अछो का रुतबा मिट्टी में मिला दिया । तडप उठा है इनसान एक आफत से ही खौफ़ का असली चेहरा आज कुदरत ने दिखा दिया लगी है लाईंन बिमारो की रुक गयी चाल सरकारो की कही है मौत का मनजर उम्मिद नही कोई ऊपचारो की । लाशे ऊठ रही है हरोज जुबां खामोश हैं । ईलाज वालों की ना मिल रहा तोड़ कोई ईसका ना आई काम खेप हथियारों की। कि कोई बात तो हैं कुदरत में सब रुक गया एक पल में अनहोनी ही तो हो गई ना चले जोर किसी का पर अब तो हद ही हो गई सारी इंसानियत जुदा हो गई। हर तरफ उठ रही प्रार्थना दुआएं शायद वो फिर सुन लेगा मौका एक बार और देगा । वो हैं अपना रहनुमा निकल जायेगा ये भी समय कि एक गुजारिश मेरी भी सुनो थोड़ा विनम्र बनो की कोई गरीब भूखा ना मरे । ये वक्त मिलकर साजा सब मिलकर करो। कुछ लोगों का कहना है वो अपने ही घर से ऊब चुके हैं। उनसे मेरा सवाल हैं जब आप आजाद पंछियों को एक छोटे से पिंजरे में कैद करते हैं उम्र-भर के लिए उनपर क्या बितती हैं कभी सोचा हैं ? ✍ विवेक जैन #जीन्दगी ने मौत का #दाम 🙏✍