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वो तन्हा रातें, मौत की ख्वाहिश..! कैसी थी ये, आख

 वो तन्हा रातें,
मौत की ख्वाहिश..!

कैसी थी ये,
आखिर फ़रमाइश..!

जीने से डर,
लगने लगा था..!

मरने की थी,
ज़ोर आज़माइश..!

जी सकूंगा,
ज्यादा दिन मैं..!

नहीं बची है,
ज़रा भी गुंजाइश..!

©SHIVA KANT
  #tanharatein