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लिखते हैं काम भर मगर मुकम्मल नहीं लिखते, हम कभी भी

लिखते हैं काम भर मगर मुकम्मल नहीं लिखते,
हम कभी भी दरिया को समंदर नहीं लिखते,
बस एक मोहब्बत ने कर दिया हरगिज हमें नाकारा,
वरना हम वहाँ भी पहुँचे है जहाँ अच्छे अच्छे साहिल नहीं टिकते,
बस एक आदत है कि खुद की हालत तंग करने की,
और फिर खुदगर्ज मोहब्बत तो हम नहीं करते,
एक ही मुस्तकबिल जो हमारा है तो हमारा है,
पसन्द के मामले में हम फेरबदल नहीं करते,
ये मेरे शहर भर का मसला है मैं को हम कहने का,
इसके चलते ही जो कल था उसे आज से बेदखल नहीं करते,
और फिर दुआ में शामिल भी तो किया गया था उसे,
अब हालात बदल गए हैं खुदा से कह भी नहीं सकते,
मुनासिब तो रहता की किसी की चादर से ढक लेते खुदको,
पर जबान के पक्के जाहिल हैं पलट नही सकते,
बाअसर, बेखबर और अपनी ज़िद्दो के सानी हैं,
एक उलझी हुई अनकही बेलौस कहानी हैं,
बेशक ही किसी को अच्छी लगे नहीं ऐसी जबानी हैं,
मेरी आँखों से पढ़ सको तो पढ़ो , बस इतनी निशानी है।

©Pràteek Siñgh
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