बेवज़ह तो कुछ नहीं था, तेरे मेरे दरमियाँ। हम दोनों ने बसाया था, सपनों का आशियाँ। दोनों की चाहत थी ये, हर लम्हें साथ बिताएँगे। तभी तो चल पड़ा था हमारा, सपनों का कारवाँ। जो भी सपने संजोए हमने, साथ मिल पूरा किया। बाकी न रखा हमने कभी, इस दिल में कोई अरमाँ। अपनी हर ख़ुशी में हमने, रिश्ते को मजबूत किया। चाहत का सफ़र फिर अपना, क्यूँ रह गया सूना। फासले भी इतने न करो, कि दूरी कम न हो सके। रिश्तों के फासले मिटाने, गुज़र जाती हैं सदियाँ। ♥️ Challenge-651 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।