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रूठ रहे हैं डाल से भी फूल अब तो आंसुओं का गीत हवा

रूठ रहे हैं डाल से भी फूल अब तो 
आंसुओं का गीत हवा गुनगुना रही
नीर की धारायें सिसकियां भर रही 
अब लौट आओ, निमंत्रण दे रही  
विरानीयां मन की ll

©Shikha Srivastava
  #मनकीबातें