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जिन्दगी की उलझनों ने ऐसा उलझाया था माँ पापा को भी

जिन्दगी की उलझनों ने ऐसा उलझाया था 
माँ पापा को भी था मैंने कुछ देर के लिए भुलाया
समझ न सकी उनकी तकलीफ 
की कैसे एक बंधन में बाँध 
अपने कलेजे के टुकड़े को किसी अनजान के साथ 
था एक नया रिश्ता बनाया 
कितना रोये होंगे तड़पे होंगे 
जब अपनी जीवन की सारी पूंजी को डोली में बिठाया
पर आज समझ आ रहा
 उस बाप की पीड़ा और माँ का दुःख
जब भगवान ने मुझे खुद एक बेटी की माँ बनाया
मा की ममता और बाप के प्यार का एहसास
जो अब हो रहा यह कभी समझ ना आया था
जो जिंदगी ने अब समझाया।

©Shnaya
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