बीज अंकुरण पौध पेड़ पौधा वृक्ष तना टहनी डाली पत्ते फूल फल इन सबों का एक स्वरूप मिट्टी को पकड़कर हर परिस्थितियों में तब तक खड़ा है जबतलक इनकी खुद की भावना वासना में न बदल जायें और न हो जायें इनके स्वाभिमान का सर्वनाश हम मानव इसके उलट है हमारी वासना भावना बन जाती है और हमारा अहंकार स्वाभिमान इसलिए एक स्वरूप को पाकर भी हम विकृत रूप में खुद को सहज व संघटित समेटने का प्रयास करते है पर अफसोस नहीं हो पाता ये हम मानवों से हमारे खुद के परिवेश मे