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सत सत नमन... हमें शंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। देवियो

सत सत नमन...
हमें शंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। देवियों और सज्जनों, आज चर्चा विशेष प्रयोजन के साथ है। आज समाज में धर्म को लेकर एक संकीर्ण दृष्टिकोण देखने को मिल रहा है, कुछ लोग धर्म के मर्म को समझे बिना धर्मांध होकर उसका अनुसरण कर रहे हैं और लोगो से जबरदस्ती करवाना भी चाह रहे हैं, ऐसे में लोगो को आदि शंकर के जीवन और उनकी बातों को समझने की  आवश्यकता है और संयोगवश समय भी सुभीता है क्योंकि आज आदि शंकराचार्य जी की जयंती है, ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार उनका जन्म सन 788 में केरल के कलाडी में हुआ था। आदि शंकराचार्य की मृत्यु सिर्फ़ 32 वर्ष की उम्र में सन 820 ईस्वी में हो गई थी, लेकिन सिर्फ़ 32 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने भारत के चार कोनों यानि दक्षिण में श्रिंगेरी, पूर्व में पुरी, उत्तर में जोशीमठ और पश्चिम में द्वारका में मठों की स्थापना की। आज भी ये मठ सनातन धर्म के सबसे बड़े पथ प्रदर्शक स्थान हैं। 

शंकराचार्य ने सिर्फ़ 8 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया था और 32 वर्ष की आयु में ब्रहमलीन होने के पहले सिर्फ़ 24 वर्षों में देश के चार अलग अलग दिशाओं में लगभग साढ़े 8 हज़ार किलोमीटर के दायरे मे इन मठों की स्थापना की। आज अगर हम लोग पूरी सुविधाओं और साधनों के साथ अगर इन चार जगहों की यात्रा कर लेते हैं तो अपने आपको बड़ा धन्य समझने लगते हैं, तो सोचिए उस व्यक्ति के बारे में जिसने आज से 1200 वर्ष पहले बिना किसी साधन और सुविधाओं के केरल से निकल कर पैदल ही पूरे देश की यात्रा करते हुए, पूरे देश में धर्म के सही मर्म का प्रचार करते हुए ज्ञान के केंद्रों की स्थापना की होगी, उसने कितने कष्ट सहे होंगे, कितनी परेशनियाँ सही होंगी, तब जाकर ये संकल्प पूरा हुआ होगा।

उनकी इसी यात्रा के अंदर एक प्रसंग आता है उनके मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ का...

मंडन मिश्र कर्मकांड के बहुत बड़े विद्वान थे और शंकराचार्य वेदों के भी आगे वेदांतों और उपनिषद की बातें करते थे। उनका शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें उन्होंने मंडन मिश्र को हरा दिया, लेकिन मंडन मिश्र  पत्नी भारती ने शंकराचार्य जी से कहा, चूँकि पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है तो आपकी जीत पूरी तभी मानी जाएगी जब आप मुझे भी हराएँगे। शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली, इसके बाद भारती ने शंकाराचार्य से शास्त्रार्थ के दौरान कामशास्त्र के बारे में सवाल किए, उनसे संभोग में स्त्री की संतुष्टि की क्रियाओं और कलाओं के बारे मे सवाल करके शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया, क्यूँकि शंकराचार्य तो बाल काल से सन्यासी थे और मंडन मिश्र ग्रहस्थ संत थे।
सत सत नमन...
हमें शंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। देवियों और सज्जनों, आज चर्चा विशेष प्रयोजन के साथ है। आज समाज में धर्म को लेकर एक संकीर्ण दृष्टिकोण देखने को मिल रहा है, कुछ लोग धर्म के मर्म को समझे बिना धर्मांध होकर उसका अनुसरण कर रहे हैं और लोगो से जबरदस्ती करवाना भी चाह रहे हैं, ऐसे में लोगो को आदि शंकर के जीवन और उनकी बातों को समझने की  आवश्यकता है और संयोगवश समय भी सुभीता है क्योंकि आज आदि शंकराचार्य जी की जयंती है, ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार उनका जन्म सन 788 में केरल के कलाडी में हुआ था। आदि शंकराचार्य की मृत्यु सिर्फ़ 32 वर्ष की उम्र में सन 820 ईस्वी में हो गई थी, लेकिन सिर्फ़ 32 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने भारत के चार कोनों यानि दक्षिण में श्रिंगेरी, पूर्व में पुरी, उत्तर में जोशीमठ और पश्चिम में द्वारका में मठों की स्थापना की। आज भी ये मठ सनातन धर्म के सबसे बड़े पथ प्रदर्शक स्थान हैं। 

शंकराचार्य ने सिर्फ़ 8 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया था और 32 वर्ष की आयु में ब्रहमलीन होने के पहले सिर्फ़ 24 वर्षों में देश के चार अलग अलग दिशाओं में लगभग साढ़े 8 हज़ार किलोमीटर के दायरे मे इन मठों की स्थापना की। आज अगर हम लोग पूरी सुविधाओं और साधनों के साथ अगर इन चार जगहों की यात्रा कर लेते हैं तो अपने आपको बड़ा धन्य समझने लगते हैं, तो सोचिए उस व्यक्ति के बारे में जिसने आज से 1200 वर्ष पहले बिना किसी साधन और सुविधाओं के केरल से निकल कर पैदल ही पूरे देश की यात्रा करते हुए, पूरे देश में धर्म के सही मर्म का प्रचार करते हुए ज्ञान के केंद्रों की स्थापना की होगी, उसने कितने कष्ट सहे होंगे, कितनी परेशनियाँ सही होंगी, तब जाकर ये संकल्प पूरा हुआ होगा।

उनकी इसी यात्रा के अंदर एक प्रसंग आता है उनके मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ का...

मंडन मिश्र कर्मकांड के बहुत बड़े विद्वान थे और शंकराचार्य वेदों के भी आगे वेदांतों और उपनिषद की बातें करते थे। उनका शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें उन्होंने मंडन मिश्र को हरा दिया, लेकिन मंडन मिश्र  पत्नी भारती ने शंकराचार्य जी से कहा, चूँकि पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है तो आपकी जीत पूरी तभी मानी जाएगी जब आप मुझे भी हराएँगे। शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली, इसके बाद भारती ने शंकाराचार्य से शास्त्रार्थ के दौरान कामशास्त्र के बारे में सवाल किए, उनसे संभोग में स्त्री की संतुष्टि की क्रियाओं और कलाओं के बारे मे सवाल करके शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया, क्यूँकि शंकराचार्य तो बाल काल से सन्यासी थे और मंडन मिश्र ग्रहस्थ संत थे।

देवियों और सज्जनों, आज चर्चा विशेष प्रयोजन के साथ है। आज समाज में धर्म को लेकर एक संकीर्ण दृष्टिकोण देखने को मिल रहा है, कुछ लोग धर्म के मर्म को समझे बिना धर्मांध होकर उसका अनुसरण कर रहे हैं और लोगो से जबरदस्ती करवाना भी चाह रहे हैं, ऐसे में लोगो को आदि शंकर के जीवन और उनकी बातों को समझने की आवश्यकता है और संयोगवश समय भी सुभीता है क्योंकि आज आदि शंकराचार्य जी की जयंती है, ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार उनका जन्म सन 788 में केरल के कलाडी में हुआ था। आदि शंकराचार्य की मृत्यु सिर्फ़ 32 वर्ष की उम्र में सन 820 ईस्वी में हो गई थी, लेकिन सिर्फ़ 32 वर्ष के जीवनकाल में उन्होंने भारत के चार कोनों यानि दक्षिण में श्रिंगेरी, पूर्व में पुरी, उत्तर में जोशीमठ और पश्चिम में द्वारका में मठों की स्थापना की। आज भी ये मठ सनातन धर्म के सबसे बड़े पथ प्रदर्शक स्थान हैं। शंकराचार्य ने सिर्फ़ 8 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया था और 32 वर्ष की आयु में ब्रहमलीन होने के पहले सिर्फ़ 24 वर्षों में देश के चार अलग अलग दिशाओं में लगभग साढ़े 8 हज़ार किलोमीटर के दायरे मे इन मठों की स्थापना की। आज अगर हम लोग पूरी सुविधाओं और साधनों के साथ अगर इन चार जगहों की यात्रा कर लेते हैं तो अपने आपको बड़ा धन्य समझने लगते हैं, तो सोचिए उस व्यक्ति के बारे में जिसने आज से 1200 वर्ष पहले बिना किसी साधन और सुविधाओं के केरल से निकल कर पैदल ही पूरे देश की यात्रा करते हुए, पूरे देश में धर्म के सही मर्म का प्रचार करते हुए ज्ञान के केंद्रों की स्थापना की होगी, उसने कितने कष्ट सहे होंगे, कितनी परेशनियाँ सही होंगी, तब जाकर ये संकल्प पूरा हुआ होगा। उनकी इसी यात्रा के अंदर एक प्रसंग आता है उनके मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ का... मंडन मिश्र कर्मकांड के बहुत बड़े विद्वान थे और शंकराचार्य वेदों के भी आगे वेदांतों और उपनिषद की बातें करते थे। उनका शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें उन्होंने मंडन मिश्र को हरा दिया, लेकिन मंडन मिश्र पत्नी भारती ने शंकराचार्य जी से कहा, चूँकि पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है तो आपकी जीत पूरी तभी मानी जाएगी जब आप मुझे भी हराएँगे। शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली, इसके बाद भारती ने शंकाराचार्य से शास्त्रार्थ के दौरान कामशास्त्र के बारे में सवाल किए, उनसे संभोग में स्त्री की संतुष्टि की क्रियाओं और कलाओं के बारे मे सवाल करके शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया, क्यूँकि शंकराचार्य तो बाल काल से सन्यासी थे और मंडन मिश्र ग्रहस्थ संत थे। #YourQuoteAndMine #सगुण #निर्गुण #आदि_शंकराचार्य #मंडन_मिश्र