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इतना खामोश होने को मन क्यों चाहता, बहुत दूर

इतना  खामोश  होने  को  मन  क्यों   चाहता,
बहुत दूर रवायतों से,जाने को मन क्यों चाहता,
गलतियां  इतनी  होती  जा  रही, खुद से,
जहन भी पोशीदा-सा क्यों होना चाहता।
दो बूंद आंखों से हैं अश्क भी न निकलते,
मेरी फ़रह को महशर-सा  बना क्यों रखा ।

(फ़रह-खुशी,महशर-प्रलय)

-sabeel ahmad #तन्हा_परिंदा #drd
इतना  खामोश  होने  को  मन  क्यों   चाहता,
बहुत दूर रवायतों से,जाने को मन क्यों चाहता,
गलतियां  इतनी  होती  जा  रही, खुद से,
जहन भी पोशीदा-सा क्यों होना चाहता।
दो बूंद आंखों से हैं अश्क भी न निकलते,
मेरी फ़रह को महशर-सा  बना क्यों रखा ।

(फ़रह-खुशी,महशर-प्रलय)

-sabeel ahmad #तन्हा_परिंदा #drd