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वो ममता है, समर्पण है, सुगम श्रृंगार भी नारी। वो क

वो ममता है, समर्पण है, सुगम श्रृंगार भी नारी।
वो क्षमता है,वो शीतलता,वो है अंगार सी नारी।
वो पावन है, पुनिता है,वो ही कृष्णा की गीता है।
कि लांघा अग्नि को जिसने,वही वैदेही सीता है।
वही दुर्गा है,वही काली है,वही है शारदे माता।
कि यमराज भी वश में सती सावित्री के पाता।
वो चंचलता कलियों की, वो सुंदरता बागों की।
करे हृदय को जो व्याकुल वही मूरत भावों की।
कि नारी को समझना ना अब अबला, सुनो तुम।
सबल है वो, वहीं शक्ति,ये गुण उसके, गुनो  तुम।

©Nilam Agarwalla #रश्मि_ममगाईं