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गरीबों के फटे जेब से झांकते छेद और मुख पर इन सबके

गरीबों के फटे जेब से झांकते छेद और मुख पर इन सबके दिखती लाचारी है।
ऐसे ही फटेहाल हालातों में जी रहे हैं हमारे ना जाने कितने ही गरीब देश वासी।

लोग देख कर भी कर देते हैं अनदेखा, देखते ऐसे हैं जैसे कभी कोई गरीब ना हो देखा।
दो वक्त की रोटी की जुगत में जिंदगी गुजारते ना रोते जानते हैं ये एक लाइलाज बीमारी है।

शायद खून ही गर्म है इनका सर्दी हो या गर्मी चंद चीथड़ों में गुजार देते सारी जिंदगानी
आंखें सुनाती दु:ख की व्यथा हरपल हर गरीब की जिंदगी की है एक जैसी ही कहानी।

 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 11

🎀 शीर्षक- "शायद खून ही गर्म है...!"

🎀 समय सीमा- आज शाम 6 बजे तक।

🎀 सभी लेखकों को इस शीर्षक पर 6 पंक्तियांँ लिखनी हैं।
गरीबों के फटे जेब से झांकते छेद और मुख पर इन सबके दिखती लाचारी है।
ऐसे ही फटेहाल हालातों में जी रहे हैं हमारे ना जाने कितने ही गरीब देश वासी।

लोग देख कर भी कर देते हैं अनदेखा, देखते ऐसे हैं जैसे कभी कोई गरीब ना हो देखा।
दो वक्त की रोटी की जुगत में जिंदगी गुजारते ना रोते जानते हैं ये एक लाइलाज बीमारी है।

शायद खून ही गर्म है इनका सर्दी हो या गर्मी चंद चीथड़ों में गुजार देते सारी जिंदगानी
आंखें सुनाती दु:ख की व्यथा हरपल हर गरीब की जिंदगी की है एक जैसी ही कहानी।

 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 11

🎀 शीर्षक- "शायद खून ही गर्म है...!"

🎀 समय सीमा- आज शाम 6 बजे तक।

🎀 सभी लेखकों को इस शीर्षक पर 6 पंक्तियांँ लिखनी हैं।