"पद" में बैठ मगन, जिसका मन, घेरे जिसे न "पद" का मोह, "पद" बैठा" हो, किन्तु लक्ष्य "पद", वो किन्चित भी शिष्य नहीं।। कितना भी ऊँचा "पद" हो, "धरा" ही है, सबका आधार, वही सुशोभित होता "पद" पर, जो गुरु-पद में शीश नवाये।। समय जाल में, सिमटा जीवन, समय दिखाता, रंगों के रंग, तू विस्मय में, समय मत गंवा, कर सद्गुरु चरणों में समर्पण।। झूठे विषय, वासना ठगिनी, सत्कर्मों की यज्ञाहुति दे, पद पर चलना सीख लिया हो, चरणकमल गुरु पद ही हो "पथ"।। ✍️.... ©Tara Chandra Kandpal #RealTeacher