( हिन्दी ग़ज़ल) ओ यहां इतना नादान कहां था पहले। है जो पत्थर दिल इंसान कहां था पहले।। बात कोई तो जरूर निकलकर आएगी, वर्ना ओ इतना मेहरबान कहां था पहले।। डर लगता है आज इन उजालों से मुझको, इतना चमकता मेरा मकान कहां था पहले।। आज भी याद है मुझको मेरी भूखी रातें, मेरा खुदा, मेरा भगवान, कहां था पहले।। हमारी कोशिशे ही भड़का गई उसको, वह पड़ोसी मेरा, बेइमान कहां था पहले। उनकी खुदगर्जियों का नतीजा है"लाल," मेरा चमन इतना वीरान कहां था पहले।। हिन्दी गजल