ना जी भर देखा ना कुछ बात की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की ना दामन ही पकड़ा ना फरयाद की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की तेरी ही यादों में खोया रहा दिल कहां का मुसाफिर , कहां है मंजिल ? ना दिन का पता ना खबर रात की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की एक बार आ जा किसी भी बहाने तेरी दूरियों को अब दिल ना मानें कर दे तमन्ना पूरी ख्वाब की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की तू जब तक आया तड़पते रहेंगे तेरी यादों में यूं ही भटकते रहेंगे अब सही नहीं जाती दूरी जन्मों की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की तेरी सूरत जो दिल में बसी है इक चिंगारी मेरे मन में दबी है कहीं खुल ना जाए ये बात राज की बड़ी आरजू थी इक मुलाक़ात की #JMD