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पल्लव की डायरी वासनाओ का खुला बाजार अंग अंग का आकर

पल्लव की डायरी
वासनाओ का खुला बाजार
अंग अंग का आकर्षण गर्माता है
सभ्य समाज देख देख शर्माता है
बन्धनों में कोई नही बंधता
रिलेशन लिव में,चरित्रों को गवाता है
पल दो पल का सुख है सब
जीवन मे अपनेपन का सुख नही पाता है
जीवन साथी जीवन भर के लिये
भारतीय परम्पराओ को ठुकराता है
                                     प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  सभ्य समाज देख देख शर्माता है

सभ्य समाज देख देख शर्माता है #कविता

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