देखो फिर से शान्त हो गई चीख किसी सुकुमारी की गली गली में यही दशा है आज देश की नारी की हुआ निकलना मुश्किल घर से संकट पल भर दूर नहीं देश, धर्म और जाति छोडिए, रिश्ते भी महफूज़ नहीं कैसे कह दूँ आज सुरक्षित घर के अंदर बेटी है बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है बेजुबान कर जख्म दिये, व्यभिचारी अस्मत लूट गए जख्मी आज धरा का सीना, आंसू नभ के सूख गए कहना चाही तो होगी, पर शब्द फूट न पाए फिर हबस मिटा लो मुझसे, कोई बहना लाज न खोए फिर आज मनुजता भी अपनी खोटी किस्मत को रोती है बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है नहीं जलाओ मोमबत्तियां, न धरने की बात करो न्याय मिले तत्काल, कोशिशें ऐसी तुम दो चार करो व्यभिचारी अस्मतखोरों पर क्या सरकारी केस करें! जिन्दा दफन करो इनको जो ऐसे नीच कुकर्म करें कब बेखौफ खुलें पलकें जो हर दिन डर डर सोती है बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है #भेड़िया #hindipoetry #hindipoem #manojkumarmanju #manju