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सूरज को देख , बाहें फैला कर अपनी ,भरू में किरणों क

सूरज को देख ,
बाहें फैला कर अपनी ,भरू में किरणों को उसकी अपने आगोश में
अंधेरा छाया है मेरे सीने में , कहती हूं ख़ामोश मैं
थमी सी धड़कन
सीने में दर्द की तड़पन
आंखों में कांटों सी चुभ रही दर्द की ओस में
उजाला हो ना तुम, तुम बिन ना  है ये जांहा
अंधेरा मिटाते तुम, तुमसे है रोशन जांहा
तुम बिन क्या सहर 
तुम बिन क्या नज़र
तुम हो तो देखे  इस जांहा को
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं
तुम अहम  हो  इस क़दर
पर सूरज , थोड़ी सी अपनी किरणे मुझे भी दे दो, जो मेरे जीवन के अंधेरे को मिटा दे
मेरे ज़हन के अंधेरे को मिटा दे
ज़ख़्म जो आंसुओं से, रिस्ते रहते हैं उन ज़ख्मों को अपनी किरणों से सूखा दे
 


इसी उमीद में
तेरी किरणों को भरू में आगोश में

©Babita Kumari 
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