पिछले दो-तीन दशकों से बजट में यह देखा जा रहा है कि सरकार पूंजीगत खर्च की ओर से स्वयं को धीरे धीरे विमुख करती जा रही है ऐसा लगता था कि शायद पूंजीगत निवेश का सारा दारोमदार निजी क्षेत्र पर आ गया है पर उस पर भी पूरा यही है कि विदेशी निवेश हर कमी की भरपाई कर सकता है चाहे वह प्रौद्योगिक विकास हो या रोजगार और निवेश हो अथवा नहीं आती लेकिन पिछले लगभग एक दशक से तमाम प्रयासों के बावजूद देश में पूंजी निवेश बढ़ नहीं पा रहा है चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र सरकार की सोच में बदलाव हुआ है और सरकार ने शरणागत ढांचा समेत कई क्षेत्रों में पूंजी निवेश करना शुरू किया पिछले 2 वर्ष की अवस्था में नई जान फूंकने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों प्रकार के निवेश को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही लेकिन कोविड-19 रन राजेश्वर भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा था जिसके कारण सरकार जो पहले ही गरीबों की बेहतरी की व्यवस्था करना और को भी दिखे राहत पैकेज पर खर्च बढ़ा चुकी थी उसके लिए निवेश के धन जुटाना संभव नहीं हो पा रहा था परंतु वर्तमान वित्त वर्ष में 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के चलते जीएसटी पर तिथियों में भी अच्छी वृद्धि हुई और प्रत्यक्ष कारों के रोज स्वर में भी इसका पूरा फायदा उठाते हुए चालू वित्त वर्ष में भी पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है ©Ek villain #अमृत काल में नवीन भारत #friends