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#OpenPoetry सुबह और हम तुम याद है वो सर्दी की सुब

#OpenPoetry सुबह और हम तुम

याद है वो सर्दी की सुबह
निकल जाते थे हम दोनों
हाथो में हाथ डाले
किसी अनजान रास्ते पर

फिर जा कर बैठ जाते थे 
किसी बगीचे के पेड़ के चबूतरे पर

तुम मेरा हाथ , हाथो में पकड़े
छुपा लेती थी अपनी शॉल के भीतर
ताकि असहज ना हो जाएं  
 बाकी लोग बगीचे के भीतर
अजीब सा था धड़कनों का हाल
दोनों के सीने के भीतर

बीन बात के बातें करते दोनों
बोलते नहीं थकते थे
और लौट आते थे फिर
अगली सुबह निकलने को #OpenPoetry
#OpenPoetry सुबह और हम तुम

याद है वो सर्दी की सुबह
निकल जाते थे हम दोनों
हाथो में हाथ डाले
किसी अनजान रास्ते पर

फिर जा कर बैठ जाते थे 
किसी बगीचे के पेड़ के चबूतरे पर

तुम मेरा हाथ , हाथो में पकड़े
छुपा लेती थी अपनी शॉल के भीतर
ताकि असहज ना हो जाएं  
 बाकी लोग बगीचे के भीतर
अजीब सा था धड़कनों का हाल
दोनों के सीने के भीतर

बीन बात के बातें करते दोनों
बोलते नहीं थकते थे
और लौट आते थे फिर
अगली सुबह निकलने को #OpenPoetry