वो दिन कितने अच्छे थे। जब हम बच्चे थे। हर कोई देखकर मुस्कराता था। कभी बाबू ,कभीमुन्ना कहकर बुलाता था। वो प्यार से गाल को खीचना बात बात पर रूठना मम्मी का गोद मे उठाना वो प्यार से समझाना। वो दिन कितने अच्छे थे। जब हम बच्चे थे। पापा का ड्यूटी से आना समोसे औऱ बर्फी लाना। सबसे पहले मैं ही खोलता था मैं बड़े वाला लूँगा। मैं ही बोलता था अपना खाकर भी मम्मी का समोसा चखना। वो दिन कितने अच्छे थे जब हम बच्चे थे। पापा का साईकिल पर अगले डंडे पर बिठाना। धीरे धीरे गानों का गुनगुनाना। गुब्बारे वाले का आना। बड़े गुब्बारे दिलाना। फिर गुब्बारे को साईकिल से छोड़ देना। ये ये ये ये ये कहकर जोर से ताली बजाना। फिर भी पापा का न डाँटना। वो दिन कितने अच्छे थे जब हम बच्चे थे। वो पहला पहला कबूतर वाला कायदा जो रोज मुझे पढ़ाते थे। नन्हे हाथो को कलम पकड़ना बार बार सिखाते थे। जब पहली बार मेने अ लिखना सिखा था। पापा के चेहरे पर थोड़ा सुकून दिखा था। पापा जब घोड़ा बन कर मुझे घूमाते थे। सच कहता हूं कि बड़े मजे आते थे। वो दिन कितने अच्छे थे। जब हम बच्चे थे। रमेष कुमार जब हम बच्चे थे