तरकश में सहस्त्र बाण लिये, मुख पे ना कोई घमंड दिखे, वैसा ही एक विरला बनने को, मैं भी इक कर्ण हो जाऊँ। कर्म को हर धर्म के उपर रखे, जो लकड़ी दान में देने को, अपना महल भी जला डाले, मैं भी इक कर्ण हो जाऊँ। शौर्य चहुँ ओर चमके जिसका, पराक्रम भी उसके गीत गाता, जिसे इक 'दिनकर' भी लिखे, मैं भी इक वो कर्ण हो जाऊँ। मैनें 'दिनकर' जी को कभी पढ़ा नहीं और इसका अफ़सोस मुझे रहेगा। पर उनके बारे में जो भी सुना या अपने दोस्तों की रचनाओं के जरिये जाना तो खुद को रोक ना पाया। एक छोटी सी कोशिश है उन्हे श्रद्धांजली अर्पित करने की। अगर कोई त्रुटी रह जाये तो दिल से क्षमाप्रार्थी हूँ। अंजान 'इकराश़' #YqBaba #YqDidi #IkraashNaama #Dinkar #Shraddhanjali #Karn