सूरज आग उगलता हुआ सर के ऊपर था। ट्रैन के चलने का मुझे भी इंतज़ार था ,उसे भी इंतज़ार था। वो नाक में गुस्सा और चहरे में मासूमियत लिए ट्रैन के पहियों के घूमने की राह देखती अचनाक समा बदला ट्रैन का पहिया घुमा ,उसके चेहरे पे मुस्कुराहट उसकी नज़र मुझ पर ,मेरी नज़र उस पर उसकी नज़रो का तो पता नही ,मगर मेरी नज़रे उसके मुस्कुराते चहरे पर थम सी गई और सुरु हुई एक अनोखी कहानी to be continued...... ट्रैन वाला प्यार