जो हाथ कलम उठाते हैं वो पत्थर उठाना नहीं जानते लहू बहाने की ख़्वाहिश में किसी का आशियाना नहीं जलाते जो हाथ उठते हों मुहब्बत लिखने को वो कत्ल करना कभी नहीं सिखाते बहुत रास्ते हैं इबादत में सिर झुकाने कोे किसी कोे गिरा कर नीचे हम खुदा नहीं बन जाते। ©दिप्ती जोशी जो हाथ कलम उठाते हैं वो पत्थर उठाना नहीं जानते लहू बहाने की ख़्वाहिश में किसी का आशियाना नहीं जलाते जो हाथ उठते हों लिखने को मुहब्बत वो कत्ल करना कभी नहीं सिखाते बहुत रास्ते हैं इबादत में सिर झुकाने कोे