अब कुछ और बनने का मन करता है, मन भर सा गया है इंसा बन के वैसे भी अब इंसा कहाँ इंसा बन के रहता है....... यहाँ तो बस कोई सिख ईसाई हिन्दू और मुसलमान रहता है...... क्यू ना हम नदी बन जाये,खुद उसका मजहब है क्या उसे कहाँ पता है....... किसी की प्यास बुझाने से पहले वो किस मजहब का है इस बात से उसे कहाँ फर्क पड़ता है.......... चलो हम सूरज बन जाये वो कहाँ हर सहर किसी के घर अपनी उम्मीदों वाली किरन फैलाने से पहले उसका मजहब पूछता है....... दिया हर घर में रौशनी तो एक जैसे ही बिखेरता है उसने किस मजहबी घर को रौशन किया ये कब पूछता है..........? बारिश की बूँदे कम या ज्यादा कहाँ गिरती है वो तो हर मजहब वाले को रूह-ए-सुकुन एक सा ही बक्शती है........... अब कुछ और बनने का मन करता है, मन भर सा गया है इंसा बन के वैसे भी अब इंसा कहाँ इंसा बन के रहता है....... यहाँ तो बस कोई सिख ईसाई हिन्दू और मुसलमान....... #kuchh_aur_ban_jaye #Chanchal_mann #hindinojoto#shayari