चलतें-चलतें कितना थक गई हूँ मैं खुद खुद सें भटक गई हूँ यहाँ कुछ नहीं है मेरा अपनें वजूद को तरस गई हूँ पापा की वो लाड़ली परी आज किसी सामान से कम नहीं शायद घर में जरुरत नहीं कबाड़ बन गई हूँ reality of my life /every married women life