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#OpenPoetry सुनो. तुम मत आना ऐसी मुलाक़ात लेकर जिस

#OpenPoetry सुनो. 
तुम मत आना ऐसी मुलाक़ात लेकर जिसमे फिर दुबारा मिलने की आस न हो, अब आराम करने दो इन तारीखों को ये थक गयीं है तुम्हारा इन्तजार करते करते|  हमारे गांव के पास वाली जो दरगाह है जिसपे अक्सर मै जाया करती थी.सुनो मै खोल आउंगी दरगाह पर बांधा मन्नत का हर एक धागा, जिसमे दुआओं मे सिर्फ तुम्हे माँगा था|  मै कह दूंगी चाँद से भी, के अब पूर्णिमा पे हमारा इन्तजार किये बिना छिप जाया करे..मै रख दूंगी वो लाल कुर्ती अपनी अलमारी के कोने मै छिपाकर जो ये सोच के बनवायी थी के ज़ब तुम आओगे तो तुम्हे पहन के दिखाउंगी..मै बदल लुंगी अबसे रात मै कहानी सुनकर ही सोने वाली आदत जो तुम ऑफिस से थक कर आने के बाद भी मुझे रोज सुनाते थे.. मै बंद कर दूंगी अब नखरे दिखाना, बात बात पर मुँह फुलाना, क्योंकि क्या पता कोई तुम्हारी तरह लिपस्टिक लगाकर, तरह तरह के मुँह बनाकर मुझे मनाये न मनाये.. सुनो तुम भी वो रोज रात  को 8 से 9 बजे के बीच (ज़ब तुम ऑफिस से घर जाते हो ) आने वाले msg (ध्यान से जाना और फोन जेब मै रख लो थोड़ी देर) का इन्तजार न करना.. सुनो तुम निभाना वहाँ अपनी सारी जिम्मेदारियां और मै यहां बन जाऊंगी किसी की पत्नी और निभाऊंगी सारी जिम्मेदारी, एक अर्धांग्नी होने की. पर उम्र के आखिरी पड़ाव मे ज़ब आ जाएंगी मेरे चेहरे पर झुर्रिया, और मै आउंगी अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होमर तुमसे मिलने... पहचान लोगे न मुझे उन झिर्रियों मे???
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तुम मत आना ऐसी मुलाक़ात लेकर जिसमे फिर दुबारा मिलने की आस न हो, अब आराम करने दो इन तारीखों को ये थक गयीं है तुम्हारा इन्तजार करते करते|  हमारे गांव के पास वाली जो दरगाह है जिसपे अक्सर मै जाया करती थी.सुनो मै खोल आउंगी दरगाह पर बांधा मन्नत का हर एक धागा, जिसमे दुआओं मे सिर्फ तुम्हे माँगा था|  मै कह दूंगी चाँद से भी, के अब पूर्णिमा पे हमारा इन्तजार किये बिना छिप जाया करे..मै रख दूंगी वो लाल कुर्ती अपनी अलमारी के कोने मै छिपाकर जो ये सोच के बनवायी थी के ज़ब तुम आओगे तो तुम्हे पहन के दिखाउंगी..मै बदल लुंगी अबसे रात मै कहानी सुनकर ही सोने वाली आदत जो तुम ऑफिस से थक कर आने के बाद भी मुझे रोज सुनाते थे.. मै बंद कर दूंगी अब नखरे दिखाना, बात बात पर मुँह फुलाना, क्योंकि क्या पता कोई तुम्हारी तरह लिपस्टिक लगाकर, तरह तरह के मुँह बनाकर मुझे मनाये न मनाये.. सुनो तुम भी वो रोज रात  को 8 से 9 बजे के बीच (ज़ब तुम ऑफिस से घर जाते हो ) आने वाले msg (ध्यान से जाना और फोन जेब मै रख लो थोड़ी देर) का इन्तजार न करना.. सुनो तुम निभाना वहाँ अपनी सारी जिम्मेदारियां और मै यहां बन जाऊंगी किसी की पत्नी और निभाऊंगी सारी जिम्मेदारी, एक अर्धांग्नी होने की. पर उम्र के आखिरी पड़ाव मे ज़ब आ जाएंगी मेरे चेहरे पर झुर्रिया, और मै आउंगी अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होमर तुमसे मिलने... पहचान लोगे न मुझे उन झिर्रियों मे???
rakhiraj2894

Rakhi Raj

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