सोंचता था क्या लिखूं आज अपनी प्रियतमा पर,
सारी उपमायें है फीकी सच मे मेरी प्रियतमा पर।
झील गर आंखों को बोलूं तो न होगा न्यायसंगत,
कितनी मधुरिम झील, हैे न्योछावर प्रियतमा पर।।
झील तो है याद उसकी जिसमे मै ना तैर पाता,
डूबा अब रहता हूं उसमे हो परेसां झटपटाता।
ये तड़प और दर्द भी स्वीकारती ना भूल पाना,