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बहुत वो दूर है मुझसे ये दिल फिर भी बुलाता है, स्वय

बहुत वो दूर है मुझसे ये दिल फिर भी बुलाता है,
स्वयं तो है तड़पता और आंखों को सताता है।
मेरा जब सामना होता है उनसे बोल न पाता,
छुपाकर दर्द सारे गम के खुलकर मुस्कराता है।।
@भानू शुक्ला सोंचता था क्या लिखूं आज अपनी प्रियतमा पर,
सारी उपमायें है फीकी सच मे मेरी प्रियतमा पर।
झील गर आंखों को बोलूं तो न होगा न्यायसंगत,
कितनी मधुरिम झील, हैे न्योछावर प्रियतमा पर।।

झील तो है याद उसकी जिसमे मै ना तैर पाता,
डूबा अब रहता हूं उसमे हो परेसां झटपटाता।
ये तड़प और दर्द भी स्वीकारती ना भूल पाना,
बहुत वो दूर है मुझसे ये दिल फिर भी बुलाता है,
स्वयं तो है तड़पता और आंखों को सताता है।
मेरा जब सामना होता है उनसे बोल न पाता,
छुपाकर दर्द सारे गम के खुलकर मुस्कराता है।।
@भानू शुक्ला सोंचता था क्या लिखूं आज अपनी प्रियतमा पर,
सारी उपमायें है फीकी सच मे मेरी प्रियतमा पर।
झील गर आंखों को बोलूं तो न होगा न्यायसंगत,
कितनी मधुरिम झील, हैे न्योछावर प्रियतमा पर।।

झील तो है याद उसकी जिसमे मै ना तैर पाता,
डूबा अब रहता हूं उसमे हो परेसां झटपटाता।
ये तड़प और दर्द भी स्वीकारती ना भूल पाना,
bhanushukla1305

Bhanu Shukla

New Creator

सोंचता था क्या लिखूं आज अपनी प्रियतमा पर, सारी उपमायें है फीकी सच मे मेरी प्रियतमा पर। झील गर आंखों को बोलूं तो न होगा न्यायसंगत, कितनी मधुरिम झील, हैे न्योछावर प्रियतमा पर।। झील तो है याद उसकी जिसमे मै ना तैर पाता, डूबा अब रहता हूं उसमे हो परेसां झटपटाता। ये तड़प और दर्द भी स्वीकारती ना भूल पाना,