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बहुत देर कर दी हुजूर जगते जगते आखों का पानी सूख गय

बहुत देर कर दी हुजूर जगते जगते
आखों का पानी सूख गया बहते बहते
हां निसान देखलो ये अभी भी हैं जिंदा
गला रूंध गया पुकार करते करते
बहुत देर कर दी .....
देर से मिला न्याय भी कोई न्याय है
अगर दिल से समझो तो घोर अन्याय है
हम कबके मर गए हैं दर्द सहते सहते
बहुत देर कर दी.....
तुम्हारे इन आखों पे तो पट्टी लगा है
बोलो जानोगे कैसे कि घोड़ा या गधा है
"सूर्य"अपराधी हो गया न्याय मिलते मिलते
बहुत देर कर.....

©R K Mishra " सूर्य "
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