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छिपा सूरज भी बादल में,हवा का ज़ोर ऐसा है गरज़ कर बर

छिपा सूरज भी बादल में,हवा का ज़ोर ऐसा है 
गरज़ कर बरसे बदरा भी,हवा का ज़ोर ऐसा है।
अकड़ सूरज की है टूटी,सदा न सम हुआ करता  
कि  रंग बदला फिजाओं का,हवा का ज़ोर ऐसा है। 
सुनीता बिश्नोलिया ©®
 छिपा सूरज भी बादल में,हवा का ज़ोर ऐसा है 
गरज़ कर बरसे बदरा भी,हवा का ज़ोर ऐसा है।
अकड़ सूरज की है टूटी,सदा न सम हुआ करता  
कि  रंग बदला फिजाओं का,हवा का ज़ोर ऐसा है। 
#सुनीता बिश्नोलिया ©®
 #सूरज #बरसात
छिपा सूरज भी बादल में,हवा का ज़ोर ऐसा है 
गरज़ कर बरसे बदरा भी,हवा का ज़ोर ऐसा है।
अकड़ सूरज की है टूटी,सदा न सम हुआ करता  
कि  रंग बदला फिजाओं का,हवा का ज़ोर ऐसा है। 
सुनीता बिश्नोलिया ©®
 छिपा सूरज भी बादल में,हवा का ज़ोर ऐसा है 
गरज़ कर बरसे बदरा भी,हवा का ज़ोर ऐसा है।
अकड़ सूरज की है टूटी,सदा न सम हुआ करता  
कि  रंग बदला फिजाओं का,हवा का ज़ोर ऐसा है। 
#सुनीता बिश्नोलिया ©®
 #सूरज #बरसात