ख़ामोश सा हूँ मैं ! कब से ? पता नहीं ! शायद तब से जब से ख़ुद मिला था । बोलने के अरमान बहुत थे । बहुत कुछ था भी बोलने को , पर -पर क्या ? बस चुप सा होके रह गया... बचपन में दोस्त तो थे, पर वो अपनी उम्र से बड़े थे। बड़ी जल्दी ही दुनियादारी सीख गए थे और कच्ची अक्ल से पक्की बातें नहीं सीख पाया मैं ! जी तो नहीं था पर बचपन में खुद को चुप करा लिया के कोई तो मिलेगा जिसके सामने इस सरोवर का पानी खाली कर दूँगा। उम्र ढलती रही और खामोशी बढ़ती गई । पर वो क्या है न कि गर्मी में तो सरोवर से पानी भाँप बन के उड़ जाता पर पर इन बरसातों में हर बार सबर का बाँध टूट जाता... .....और एक बाढ़ आ जाती तब मैं हाँ मैं ये नहीं सोचता कि कौन है सामने दोस्त या दुश्मन बस शुरू हो जाता खाली करना खुद को। बिना सोचे नदी की तरह बह जाती मेरी खामोशी जब होश आता तो लूटा-पुटा सा किसी किनारे पे खुद की लाश उठाता । बदबू - बाढ़ का पानी उतरने के बाद कि वो बू गर्म पानी और साबुन से रगड़ के नहाने के बाद भी नाक से नहीं जाती और एक कोना पकड़ के घर का ऐसे बैठ जाता कि मानों अभी हाँ बस अभी किसी राम के प्यारे को शमसान में जला के बस लौटे हो ....... जवानी में सपना था के कुछ कर गुज़रेंगे। इस पीपल के पेड़ को भी भाग लगेगें। पर खुद के सरोवर के पानी से ये पीपल पनप नहीं पाया । मैं पीपल का वो पेड़ हो गया जिस पर कोई जल नहीं चढ़ाता था । कोई चौपाल इस पेड़ के नीचे नहीं लगती थी...... तब सोचा के शायद कोई भूत या चुड़ैल ही मिल जाए जो इस पीपल के खाली पेड़ को घर बना ले और जिसे मैं अपनी खामोशी के सरोवर का नीर पिला सकूँ । पर कोई भी ऐसा नहीं मरा को भूत बनके ही सही पर कुछ बोल तो जाता । चुप रहने की अब ऐसी आदत हो गई है कि ज़ुबाँ को सिर्फ स्वाद लेने का काम सौंप रख्खा है ,अब उसे ज्यादा तंग नहीं करता। एक दोस्त बना तो मेरा पर वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाया गाँव के वेल्लों से सुना है, उसे ईश्क़ का रोग हुआ था.... अब कभी दिखता भी है तो नज़रे घुमा लेता है क्या करे दोस्त था न अभी भी दोस्ती निभा रहा है शायद छूत की बीमारी सा होता होगा ये ईश्क़ का रोग... आज अमावस्या है रात काली है सरोवर का पानी भी काला हो गया है मैं ख़ामोश हूँ पर आँखे नहीं मान रहीं इन्तज़ार में है कि शायद कोई प्यासा यहाँ पानी पीने चले आये .............. ©️ ✍️ सतिन्दर 09.02.18 #सतिन्दर #कहानी #खामोशी #story #चुप