कमबख़्त सादगी पे अब मरता कौन है इश्क़ पहले जैसा....अब करता कौन है इस ज़मीं पर तेरी साख अब रही नहीं रहने दे ख़ुदा तुझसे अब डरता कौन है तबीब भी लगते हैं तबीयत के मारे सारे ग़ैरों के ज़ख़्म यहाँ अब भरता कौन है मैं ख़ामोशी से सुन लेता हूँ ताने सब के बाद में मेरे अन्दर मुझसे लड़ता कौन है मैं तो बेख़बर.. सो जाता हूँ रोज़ थक कर सारी रात फिर ये करवटें बदलता कौन है ©technocrat_sanam तबीब=वैद्य/हकीम (Doctor) #करवटें कमबख़्त सादगी पे अब मरता कौन है इश्क़ पहले जैसा....अब करता कौन है इस ज़मीं पर तेरी साख अब रही नहीं रहने दे ख़ुदा तुझसे अब डरता कौन है